पेरिस जलवायु समझौता का अर्थ

पेरिस जलवायु समझौता U.N.F.C.C.C के भीतर ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए कई देशो के द्वारा 2015 में किया गया प्रयास का प्रतिफल है. पेरिस समझौते में, प्रत्येक देश ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए स्वयं के योगदान को निर्धारित करता है. भारत समेत 171 देशो के प्रतिनिधियों ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को अपनी मंजूरी देते हुए इस पर हस्ताक्षर किये. जलवायु समझौते के तहत सभी सदस्य देशों ने 21वी सदी में दुनिया के तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री से कम स्तर तक सीमित करने का लक्ष्य रखा है. संयुक्त राष्ट्र महासभा के सभागार में भारत की तरफ से उस समय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर (अब मानव संसाधन विकास मंत्री) ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किये. समझौते पर हस्ताक्षर के बाद सभी देशों को अपने देश की संसद से इस समझौते का अनुमोदन करना होगा. संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने उस अवसर पर कहा था की “ यह इतिहास में एक अहम् क्षण है. आज आप भविष्य से जुड़े एक संधि पत्र पर हस्ताक्षर कर रहे है.”


ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु समझौता

पेरिस समझौता बिजली के निर्माण से लेकर अन्य कई चीजों पर कड़ी नज़र रखेगा. जिनमे मुख्य होगा कि किस प्रकार से कुछ चुनिंदा अमीर देश बाढ़, सूखे और तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निबटने में गरीब राष्ट्रों की मदद करते है. वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन मानव जीवन के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. 18वी शताब्दी में प्रारंभ हुई औधोगिक क्रांति ने हमे मुख्यतः जीवाश्म ईंधन पर निर्भर बना दिया है और हम बिजली से लेकर कारखानों और कृषि तक पूरी तरह से इसी पर निर्भर है. लेकिन यह ईंधन बहुत बड़ी मात्रा में ऐसी गैसों का उत्सर्जन करते है, जो सूरज की ऊष्मा को पूरी तरह से धरती तक आने देती है. अतः यह ऊष्मा वायुमंडल में कैद हो जाती है, जिससे वायुमंडल का ताप बढ़ रहा है. इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते है. इसके चलते धरती के तापमान में पहले से ही करीब 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है. जलवायु परिवर्तन संपूर्ण मानवता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है और पेरिस समझौता इस चुनौती से निबटने के बारे में ही है.      
ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) से मुकाबला करने की दिशा में इस समझौते को बड़ा कदम माना जा रहा है. विकासशील और विकसित देश धरती के बढ़ते तापमान को कम करने के लिए एक साथ खड़े हुए है. फ़िलहाल ग्रीन-हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटोती के मौर्चे पर काम शुरू करने के लिए दुनिया के देश एकजुट दिख रहे है.

पेरिस जलवायु समझौते में तय किये गए लक्ष्य

  • सभी देश कार्बन उत्सर्जन में जल्द-से-जल्द कमी लायेंगे.
  • ग्रीन हाउस गैसों और उनके स्रोत के बीच 2020 तक संतुलन बनाया जायगा.
  • वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने की कोशिश का लक्ष्य.
  • हर पांच साल में इस दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा की जायगी.
  • 2020 तक कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए विकासशील देशों को हर साल 100 अरब डॉलर की मदद दी  जायगी, जिसे और भी बढाया जा सकता है.


भारत का पक्ष

संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष रखते हुए प्रकाश जावडेकर (उस समय पर्यावरण मंत्री) ने कहा  था कि इस समझौते से विकसित और विकासशील देशों की परीक्षा होगी. गैस उत्सर्जन में कटौती और गरीबी उन्मूलन पर भी देशों की गंभीरता की परख होगी. भारत ने यह भी स्पष्ट करते हुए कहा कि धनी देशों के दशकों के औधोगिक विकास के बाद जलवायु परिवर्तन से लड़ने का बौझ गरीब देशों के कंधो पर नही डाला जा सकता. फ़िलहाल भारत ने हर परिवार को बिजली की आपूर्ति की सरकार की योजना के तहत् 2022 तक अपनी नवीकरणीय विधुत क्षमता चार गुना बढ़ाकर 175 मेगावाट करने की घोषणा की है.  
जलवायु परिवर्तन की वजह से पुरे विश्व में समस्याएं बढ़ रही है. भारत में इसका प्रभाव हम सीधे तौर पर देख सकते है. प्रदूषण की समस्या से जलवायु पर बहुत प्रभाव पड़ा है. भारत में पिछले कुछ वर्षों से सूखे की वजह से अधिकाँश किसान बर्बादी के कगार पर खड़े है. और सैकड़ो ने तो आत्महत्या कर अपना जीवन ही समाप्त कर लिया है. देश के कई हिस्सों में सूखे की वजह से पानी की समस्या लगातार बनी हुई है. इसके आलावा कई जगह बेमौसम वर्षा ने बाड़ की समस्या पैदा की है.

भारत द्वारा हर प्रकार से समझौते के अनुसार सहयोग देने का वादा किया जाता रहा है. और आगे भी भारत इसमें अपना सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है. 

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