परमाणु अप्रसार संधि
Introduction
परमाणु हथियारों के विस्तार को सामान्यतया विश्व की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा माना जाता है. परमाणु प्रौधोगिकी (तकनीक) के उपयोग पर इतनी अधिक चर्चा नही होती है क्योकि किसी भी राष्ट्र के विकास की प्रक्रिया में परमाणु प्रौधोगिकी (तकनीक) के उपयोग को स्वीकार किया गया है. इस प्रोधौगिकी (तकनीक) की शांतिपूर्ण बनाम सैन्य उपयोगो पर वाद विवाद है. पिछले कुछ वर्षो से यह चर्चा अधिक जटिल कार्य है. क्योकि इस प्रौधिगिकी के “दोहरे प्रयोग” को जिस उपयोग के लिए बढाया जा रहा है, उसका अंतिम उपयोग किस प्रकार होगा, इसमें अंतर करना बहुत कठिन हो सकता है. फिर भी अन्तराष्ट्रीय सुरक्षा के विषय में जितना लिखा जा रहा है, उसमे इसी विषय की प्रमुखता है. मुख्य चिंता इनकी बढती हुई संख्या है न कि विस्तार.परमाणु प्रसार की नीतियों को इस समय दो प्रकार के मुद्दे एक दुसरे को प्रभावित कर रहे है, एक
तो, तकनीकी और राजनितिक प्रकार के मुद्दे और दुसरे का सम्बन्ध सम्बंधित देशो की क्षमता और उद्देश्य से है.
एक परमाणु संपन्न देश होने से रोकने के लिए उन पर
अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाने की आवश्यकता
होती है. दूसरा, परमाणु संपन्न होने से रोकने के लिए देशो को आर्थिक या अन्य तरीके के रूप में विभिन्न प्रोत्साहन देने की आवश्यकता होती है.
होती है. दूसरा, परमाणु संपन्न होने से रोकने के लिए देशो को आर्थिक या अन्य तरीके के रूप में विभिन्न प्रोत्साहन देने की आवश्यकता होती है.
परमाणु अप्रसार नीति का विकास
1.
युद्धोतर अवस्था वह है जिसमे विश्व में एकमात्र
परमाणु शस्त्र शक्ति के रूप में, संयुक्त राज्य अमेरिका का एकाधिकार नियंत्रण
बनाये रखने के प्रयासों और गोपनीयता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है.
2.
संयुक्त राष्ट्र संघ में 1953 में घोषित “शांति
के लिए परमाणु” कार्यक्रम के माध्यम से.
3. विश्व भर में परमाणु
शास्त्रों का प्रसार रोकने के लिए परमाणु शस्त्र सम्पन्न शक्तियों द्वारा सुरक्षा
उपायों के माध्यम से नियंत्रण की नीति प्रायोजित की गयी. इसे 1968 में परमाणु
अप्रसार संधि (N.P.T.) में और बाद के प्रयासों, जैसे व्यापक परीक्षा प्रतिबंध संधि
(C.T.B.T.) में समावेश करने के लिए लाया गया.
4.
इसके बाद भी पश्चमी देशो तथा U.N. द्वारा कई
प्रयास किये गये जिसमे कई प्रकार की सन्धिया हुई.
परमाणु अप्रसार संधि का विश्लेषण
परमाणु अप्रसार संधि
1968 में हुई थी. इसका उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने
के साथ साथ परमाणु परिक्षण पर अंकुश लगाना है. 1 जुलाई 1968 से इस समझौते पर
हस्ताक्षर होना शुरू हुआ. अभी इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशो की संख्या 190
है.
यह संधि परमाणु
सम्पन्न देशो द्वारा सभी देशो के साथ की गयी संधि थी. संधि हस्ताक्षरकर्ताओ को दो
श्रेणियों में विभाजित करता है, पहले वे देश जिनके पास परमाणु बम है, (जिनके पास 1 January 1967 से पहले थें) और दुसरे वे देश जिनके पास नही थे. इस प्रकार गैर
परमाणु शस्त्र देश परमाणु सामग्री के अपने भंडार का निरिक्षण करने के वचनबद्ध हो
गये. N.P.T. उन्हें I.A.E.A. से सुरक्षा उपाए संधियों पर वार्ता करने का वचन देता है.
परन्तु ये सुरक्षा उपाए शस्त्र देशो या परमाणु सम्पन्न देशो पर बंधनकारी नही है.
जो इसके दोहरे मापदंड को प्रदर्शित करती है. गैर शस्त्र राज्यों द्वारा परमाणु
शस्त्र उत्पादन न करने या अर्जित न करने के बदले शस्त्र धारक या परमाणु सम्पन्न
देश निम्नलिखित पर सहमत हुए:
1.
परमाणु शस्त्रों या अन्य परमाणु शस्त्र उपकरणों
का हस्तांतरण न करना.
2.
1953 में आंशिक परिक्षण प्रतिबन्ध संधि के
उपसिद्धात के रूप में सभी (भूमिगत सहित) परमाणु परीक्षणों की समाप्ति की मांग करना
3. UN के चार्टर के
अनुपालन में धमकी या बल प्रयोग को रोकना
4.
अनुसन्धान उत्पादन और शांतिपूर्ण प्रयोजनो के लिए
परमाणु ऊर्जा का प्रयोग विकसित करना तथा इस सम्बन्ध में विकासशील देशो की सहायता
करना,
5.
परमाणु विस्फोटो के शांतिपूर्ण प्रयोग से संभावित
लाभ सभी देशो को उपलब्ध करना
6. परमाणु शस्त्रों की
दोड़ समाप्त करना तथा परमाणु निरस्त्रीकरण अपनाने के लिए संधिवार्ता करना.
गैर परमाणु शस्त्र राज्य संधि के आलोचक भी थे. उन्होंने इसे भेदभावपूर्ण संधि महसूस किया. उनकी आलोचना के मुख्य बिंदु थे
1. संधि के प्रावधानों
का असमान स्वरूप, जो सुरक्षा उपाय केवल गैर परमाणु देशो के ऊपर थोपे गये है.
2. शस्त्र सम्पन्न देशो
का शांतिपूर्ण प्रयोग कार्यक्रम का अनुसन्धान करने का अधिकार प्रदान कर उनके
वाणिज्यिक हितो को संरक्षण दिया गया है.
3. शस्त्र सम्पन्न देशो
की ओर से अस्पस्ट वचनबद्धता
4. गैर परमाणु देशो की
वैध सुरक्षा चिन्ताओ को करने में विफलता.
परमाणु शस्त्रों का
प्रसार रोकने के लिए तैयार किया गया प्रभावकारी अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण व्यवस्था
का निर्माण करने का पहला सोपान N.P.T. माना गया है.
सिर्फ भारत, इजराइल,
पाकिस्तान और उत्तरी कोरिया इसके सदस्य नही है. N.P.T. के तहत भारत को परमाणु सम्पन्न
देश की मान्यता नही दी गयी है. क्योकि भारत को यह संधि भेदभावपूर्ण लगी थी. इसलिए
भारत ने अब तक इस पर हस्ताक्षर नही किये है.
0 comments:
Post a Comment