दक्षिण एशिया सैटेलाइट
अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौधोगिकी (Technology) के क्षेत्र में पडोसी देशों के साथ विशेषज्ञता साझा करने की दिशा में भारत द्वारा लॉन्च किया गया 'दक्षिण एशिया सैटेलाइट' अंतरिक्ष तकनिकी के साथ-साथ विदेश नीति के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है.भारत ने वर्ष 2014 के काठमांडू (नेपाल) सम्मलेन में SAARC सैटेलाइट को लॉन्च करने के बारे में घोषणा की थी.इसकी घोषणा भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 18वें सार्क सम्मलेन में की गयी थी.
इस सैटेलाइट को दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के क्षेत्रों के लिए लॉन्च किया गया था. परन्तु पाकिस्तान द्वारा इस सुविधा को नकारने के बाद यह पूर्ण रूप से सार्क के लिए नही रहा.
इस सैटेलाइट के 5 मई, 2017 को लॉन्च किया गया था. इसे GSLV-MK 2 Launch Vehical द्वारा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्री हरिकोटा से लॉन्च किया गया था. ISRO द्वारा निर्मित किये जाने वाले इस सैटेलाइट का कुल वजन लगभग 2230 kg. है और इसमें 12KU-बैंड के Transponder लगे है. दक्षिण एशियाई सैटेलाइट (GSAT-9) एक Geosynchronous संचार और मौसम विज्ञान संबंधी सैटेलाइट है. इस सैटेलाइट का जीवनकाल लगभग 12 साल से अधिक की अवधि का है. GSAT-9 के नाम से जाने जाना वाला यह सैटेलाइट दूरसंचार तथा प्रसारण अनुप्रयोगों के क्षेत्र में पूर्ण सीमा तक सुविधाएँ उपलब्ध कराने में सक्षम है.
South Asia Satellite launch by ISRO |
SAARC या GSAT-9 एक Geosynchronous संचार और मौसम विज्ञान सैटेलाइट है.
सैटेलाइट के प्रयोग
यह दक्षिण एशियाई देशों के लिए संचार व्यवस्था तथा बाढ़ के समय एक-दूसरे के सहायता प्रदान करने में मदद प्रदान करेगा.यह सैटेलाइट दक्षिण एशियाई देशों को DTH, VSAT तथा प्राकृतिक आपदा के विषय में बेहतर सूचनाएं प्रदान करने में मदद करेगा.
इसके अलावा यह TV, दूरस्थ- शिक्षा, Telemedicine तथा दूरसंचार सेवाएँ भी उपलब्ध कराएगा.
दक्षिण एशिया सैटेलाइट से भारत को लाभ
सर्वप्रथम यह भारत की बढती तकनीकी कौशलता का प्रदर्शन करती है.यह देशों को मौसम संबंधी पूर्वानुमान, Telemedicine, संचार तथा प्रसारण आदि में सुविधा प्रदान करेगा.
चीन की योजना थी कि वह दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र के लिए एक क्लाउड का प्रक्षेपण करेगा, लेकिन भारत ने पहले ही सार्क सैटेलाइट का लॉन्च कर एक बुद्धिमानी भरा कार्य किया है.
भारत ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि दक्षिण एशियाई देशों में वह एकमात्र ऐसा देश है जिसने स्वदेश में विकसित Launch Vehical द्वारा स्वतंत्र रूप से सैटेलाइट का प्रक्षेपण किया है.
चंद्रयान मिशन, मंगलयान मिशन तथा दक्षिण-एशिया सैटेलाइट स्वदेशी तकनीक की विकास की क्षमता को रेखांकित करते है.
जिस समय भारत के पडोसी देश अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए चीन से मदद लेने की कोशिश में है तब यह भारत द्वारा सही समय उठाया गया एक सही कदम है.