नेट न्यूट्रैलिटी क्या है?
नेट न्यूट्रैलिटी का अर्थ इन्टरनेट सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों के द्वारा इन्टरनेट पर उपलब्ध सभी प्रकार के सेवाओं और आंकड़ों को समान दर्ज़ा प्रदान करना है. इसके अंतर्गत बिना किसी भेदभाव के उपभोक्ता इन्टरनेट पर प्रकाशित किसी भी सामग्री और सेवा का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र को प्रभावित नही करेगी.नेट न्यूट्रैलिटी यह सुनिश्चित करती है इन्टरनेट एयर प्रयोक्ता के आपसी संबंधों को कोई तीसरा पक्ष प्रभावित नही करेगा.
हाल के वर्षो में इन्टरनेट को लोगो तक पहुचाने की प्रक्रिया में तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप की घटनाएं सामने आई है.
मौटे तौर पर ऐसा दो तरह से हो रहा है. पहला- कुछ ख़ास इन्टरनेट ठिकानों तक पहुँच को बहुत मुश्किल या खर्चीला बना देना, दूसरा- कुछ ख़ास वेबसाइटों तक पहुँच को बहुत आसान, नि:शुल्क और अधिक सुलभ बना दिया जाना.
हालांकि, दोनों ही तरह के हस्तक्षेपों की प्रकृति अलग है लेकिन दोनों ही इन्टरनेट की पूरी प्रणाली में निहित समानता तथा खुलेपन के अधिकार पर चोट करते है.
Net Neutrality and India |
भारत में नेट न्यूट्रैलिटी
भारत में नेट न्यूट्रैलिटी का मामला 2014 में उभरा जब एयरटेल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गोपाल विट्ठल ने कहा कि Skype, Line, Whats app, Hike और इसी तरह के दूसरे मैसेजिंग एप्स को उसी तरह से नियंत्रित किये जाने की जरुरत है, जैसे दूरसंचार कंपनियों को किया जाता है.
स्वाभाविक रूप से मैसेजिंग एप्स और इन्टरनेट आधारित कंपनियों तथा उपभोक्ताओं ने इसका विरोध किया. इसके बावजूद आगे कम्पनी ने V.O.I.P आधारित सेवाओं के लिए अतिरिक्त शुल्क की बात की. हालांकि इसका काफी विरोध हुआ और इसे नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ कहा गया.
स्वाभाविक रूप से मैसेजिंग एप्स और इन्टरनेट आधारित कंपनियों तथा उपभोक्ताओं ने इसका विरोध किया. इसके बावजूद आगे कम्पनी ने V.O.I.P आधारित सेवाओं के लिए अतिरिक्त शुल्क की बात की. हालांकि इसका काफी विरोध हुआ और इसे नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ कहा गया.
2015 में रिलायंस और फेसबुक ने मिलकर Internet.org या फ्री बेसिक्स के नाम से मुफ्त इन्टरनेट सेवा की शुरुआत की. इसके तहत रिलायंस कम्युनिकेशन के उपभोक्ताओं को एक एप के माध्यम से 38 वेबसाइटों को नि:शुल्क इस्तेमाल करने की सुविधा प्रदान की गयी थी.
मीडिया, गैर-सरकारी संगठनो, जन प्रतिनिधि, तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा नेट न्यूट्रैलिटी के उल्लंघन के आधार पर इसका बड़ा विरोध हुआ. क्योकि, यह व्यक्ति के चुनने की स्वतंत्रता को परोक्ष रूप से प्रभावित करता था, इसलिए इसे नेट न्यूट्रैलिटी के खिलाफ माना गया और अंत में T.R.A.I के आदेश के बाद इसे भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया.
भारत में इन्टरनेट सभी के लिए जरुरी है इसलिए T.R.A.I ने हाल ही में नेट न्यूट्रैलिटी को जरुरी बताया और इसे लागू रहने की बात कही. आज प्रत्येक नागरिक के लिए इन्टरनेट जरुरी है और इसमें हस्तक्षेप कर इस पर रोक लगाना कई विशेषज्ञों की नजर में सही प्रतीत नही होता है.
नेट न्यूट्रैलिटी से जुडी चुनौतियाँ
अभी हाल ही में अमेरिका में F.C.C के मुहर के बाद नेट न्यूट्रैलिटी पर प्रतिबंधित लगा दिया गया, लेकिन एक बड़ा तबका इस चिंता के तहत इसका विरोध कर रहा है कि इससे यूजर्स और छोटी कंपनियों को नुकसान होगा.इसका असर कई देशों पर भी देखने को पड़ सकता है, और हो सकता है कि कई देश इसके पीछे चल पड़े और इन्टरनेट पर रोक लगाना शुरू कर दे.
इन्टरनेट का महंगा होना और इसकी सुलभता की कमी भी लोगो को ऐसे लुभावने प्लान्स की ओर आकर्षित करती है, जिसका फायदा बड़ी कंपनियां उठाना चाहती है.
अमेरिका में यह कोशिश कामयाब होने का मतलब यही है कि अगले एक दो वर्षों में ही नेट न्यूट्रैलिटी पूरी दुनिया से विदा हो जायगी. इन्टरनेट की मल्टी-लेन सर्विस शुरू हो जाने के बाद ज्यादा स्पीड का कंटेंट, जैसे लाइव टीवी देखने के लिए उपभोक्ता को ज्यादा डाटा पैक भी खरीदने होंगे.
आज भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में नेट न्यूट्रैलिटी लागु है. इन्टरनेट की सुविधा सबको सामान रूप से और सामान कीमत पर उपलब्ध है. यूजर, कंटेंट, साइट, प्लेटफार्म, एप्लीकेशन और संचार के तरीकों के आधार पर कोई भेदभाव नही किया जाता. लेकिन पूरी दुनिया में इन्टरनेट को शेर-बकरी की लड़ाई वाली जगह बनाने की कोशिश जारी है.
भारत में अभी भी नेट न्यूट्रैलिटी से सम्बंधित कोई ठोस कानून मौजूद नही है जिससे इसके उल्लंघन को विधिक रूप से चिन्हित कर उसे प्रतिबंधित किया जा सके. लेकिन भारत सरकार तथा T.R.A.I ने साफ़ कहा है कि भारत में इन्टरनेट पर सबका हक़ है और इस पर कोई प्रतिबन्ध नही लगेगा.
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