भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस : विकास, आवश्यकता और चुनौतियाँ
कॉर्पोरेट गवर्नेंस क्या है?-Corporate Governance
साधारण शब्दों में Corporate Governance का संबंध उन तौर तरीकों से है, जिनके माध्यम से Corporate संस्थाएं चलाई जाती है.Corporate Governance की संरचना कंपनी के बोर्ड (board), प्रबंधको (managers) , शेयरधारको (shareholders) एवं अन्य हितधारकों (stakeholders) सहित कंपनी के विभिन्न हितधारकों के बीच अधिकारो एवं जिम्मेदारियों का बाँटना सुनिश्चित करती है.
Corporate Governance का प्रमुख उद्देश्य संसाधनों का इष्टतम (optimal) उपयोग करने के साथ साथ शेयरधारको (shareholders) की संपत्ति में वृद्धि करना है.
भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस की आवश्यकता- Need of Corporate Governance
भारत अभी तक अपनी कानूनी एवं विनियामक प्रणालियों तथा प्रवर्तन क्षमताओं का पूरी तरह से विकास नहीं कर पाया है. निजी क्षेत्र की संस्थाएं विकसित देशों के समान सुविकसित नहीं है.पारदर्शिता (Transparency) और प्रकटीकारण मानदंडो (Disclosure Norms) की कमी के साथ साथ कंपनी के खातों की गलत जानकारी देने की घटनाएं ऐसे मुद्दे है जिनके जल्दी समाधान किये जाने की आवश्यकता है.
बाजार में कंपनियों की बड़ी संख्या को देखते हुए रिपोर्टिंग और जवाबदेही के मानकों में कमजोरी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है.
इसलिए उपर लिखे इन का कॉर्पोरेट क्षेत्र के कारकों या कमियों की वजह से भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस की आवश्यकता है.
भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस का विकास-Development of corporate governance in India
उदारीकरण (Liberalization) और निजीकरण (Privatization) के बाद भारत में अच्छे Corporate Governance हेतु फ्रेमवर्क (framework) तैयार करने के संबंध में सिफारिश करने के लिए A.S.S.O.C.H.A.M, S.E.B.I और C.I.I ने समितियां गठित की थी.बाद में कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय ने वैश्विक वित्तीय संकट और भारत में बड़ी कंपनियों के असफल होने के मद्देनजर Corporate Governance स्वैच्छिक दिशानिर्देश 2009 निर्धारित किये थे. इनका उद्देश्य पारदर्शित, नैतिक और उत्तरदायी कॉर्पोरेट गवर्नेंस फ्रेमवर्क का निर्माण करना है.
भारत में कंपनियों के विनियम से सम्बंधित प्रमुख क़ानून कंपनी अधिनियम, 2013 है. इसके अतिरिक्त, S.E.B.I अधिनियम, 1992 द्वारा भी कंपनियां विनियमित होती है.
क्या कहता है कंपनी अधिनियम, 2013
पूर्वर्ती कंपनी अधिनियम, 1956 के स्थान पर यह नया कंपनी अधिनियम लागू किया गया है.इसमें लेखापरीक्षा समिति का गठन करने का प्रावधान किया गया है, जिसमे कम से कम तीन निदेशक सदस्य शामिल होंगे और उनमे स्वतंत्र निदेशकों का बहुमत होगा.
प्रत्येक निदेशक को अधिनियम में विहित प्रक्रिया के अनुसार किसी कंपनी, कॉर्पोरेट निकाय, फर्म तथा पक्षकारों आदि में अपने हितों का खुलासा करना होता है.
इस अधिनियम के अनुसार कतिपय कंपनियों को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (C.S.R) समिति का गठन करना होता है. इस समिति को कंपनी की C.S.R पहलों की योजना बनाने, सिफारिश करने और निगरानी करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है.
भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस की चुनौतियाँ व सुधार-Challenges & Improvements
चुनौतियाँ
प्रमुख शेयरधारक अपने हितों को पूरा करने के लिए कंपनी के संसाधनों पर एकाधिकार प्राप्त कर लेते है. बहुमत रखने वाले शेयरधारको (majority shareholders) और अन्य हितधारको के बीच स्पष्ट एजेंसी गैप दिखाई देता है.पश्चिमी देशों के विपरीत भारत में बोर्डों और स्वतंत्र निदेशकों को सामान्यत शक्तियां प्रदान नहीं की जाति है और वे शेयरधारको की इच्छानुसार निर्णय लिए जा सके.
सुधार की आवशयकता
स्टॉक एक्सचेंजों का विकास शेयर के स्वामित्व का पंजीकरण की प्रणाली का विकास करने, अल्पसंख्यक शेयरधारकों के हितों की रक्षा करने के लिए क़ानून बनाने, सतर्कता वित्तीय प्रेस का सशक्तिकरण करने तथा लेखापरीक्षा एवं लेखांकन (Audit and Accounting) मानकों में सुधार करने की आवश्यकता है.विचारधारा के स्तर पर विभिन्न हितधारकों के मन में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के प्रति व्यापक सहनशीलता के खिलाफ स्थाई परिवर्तन लाना होगा.
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